महर्षि दुर्वासा का परिचय
महर्षि दुर्वासा (संस्कृत: दुर्वासा) हिंदू धर्म के महान ऋषियों में से एक हैं। वे ऋषि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र हैं तथा भगवान शिव के अंश माने जाते हैं। दुर्वासा का अर्थ है "जिनके साथ रहना कठिन हो" - यह नाम उनके क्रोधी स्वभाव के कारण पड़ा।
महर्षि दुर्वासा अपनी तीव्र तपस्या, अलौकिक शक्तियों और विशेषकर अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महान व्यक्तित्वों को श्राप और वरदान दिए हैं, जिनका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड पर पड़ा है।
विशेष तथ्य
महर्षि दुर्वासा सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग - तीनों युगों में उपस्थित रहे हैं। उन्होंने अपनी दीर्घ आयु में अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं में भाग लिया और धर्म की स्थापना में योगदान दिया।
जन्म की कथा
पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के एकांत में देवताओं ने बाधा डाली। इससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके तीसरे नेत्र से निकली क्रोधाग्नि पूरे ब्रह्मांड को जलाने लगी।
माता अनुसूया ने अपनी तपस्या के बल से इस क्रोधाग्नि को अपने गर्भ में धारण कर लिया। इस प्रकार महर्षि दुर्वासा का जन्म हुआ। चूंकि वे शिव की क्रोधाग्नि से जन्मे थे, इसलिए उनमें अत्यधिक क्रोध का गुण था।
प्रमुख कथाएं
इंद्र और ऐरावत का प्रसंग: एक बार दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को पुष्प माला भेंट की। इंद्र ने उस माला को अपने हाथी ऐरावत के सिर पर रख दिया। हाथी ने सुगंध से परेशान होकर माला को जमीन पर फेंक दिया। इससे क्रोधित दुर्वासा ने इंद्र और सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दिया।
अम्बरीष की कथा: राजा अम्बरीष के साथ हुई घटना दुर्वासा ऋषि की सबसे प्रसिद्ध कथा है। एकादशी के व्रत के दौरान हुए विवाद में दुर्वासा ने अम्बरीष पर राक्षस छोड़ा, लेकिन विष्णु के सुदर्शन चक्र ने अम्बरीष की रक्षा की।
श्राप और वरदान
महर्षि दुर्वासा ने अपने जीवन में अनेक श्राप दिए: शकुंतला को दुष्यंत द्वारा भुलाए जाने का श्राप, रुक्मिणी को कृष्ण से बिछुड़ने का श्राप। साथ ही उन्होंने कुंती को मंत्र का वरदान दिया जिससे पांडवों का जन्म हुआ।
तपोभूमि और आश्रम
महर्षि दुर्वासा के कई आश्रम भारत भर में स्थित हैं। प्रमुख स्थान हैं:
- दूरा (आगरा), उत्तर प्रदेश - तालाब तट पर - मुख्य तपोभूमि
- आजमगढ़, उत्तर प्रदेश - तपोभूमि
- प्रयागराज (खारु बाब) - गंगा तट पर स्थित आश्रम
- मथुरा - यमुना के तट पर आश्रम
- गुजरात (पिंडारा) - प्राचीन मंदिर समूह
आध्यात्मिक महत्व
महर्षि दुर्वासा की कथाएं हमें सिखाती हैं कि क्रोध कितना विनाशकारी हो सकता है, लेकिन साथ ही यह भी बताती हैं कि धर्म और सत्य के पक्ष में खड़े होने वालों की हमेशा रक्षा होती है। उनकी कथाओं से यह शिक्षा मिलती है कि गुरुजनों का सम्मान करना चाहिए और अहंकार से बचना चाहिए।
आज भी श्रद्धालु महर्षि दुर्वासा के आश्रमों में जाकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और क्रोध पर नियंत्रण की शक्ति मांगते हैं।